बिहार के इन सात वीरों ने गोली खाई पर भी नहीं झुकने दिया था तिरंगा

बिहार के इन सात वीरों ने गोली खाई पर भी नहीं झुकने दिया था तिरंगा: महात्मा गांधी की घोषणा के साथ ही पूरे देश में नौ अगस्त को आंदोलन शुरू हो गया। आंदोलन की ये चिंगारी Bihar में पटना में भी भड़क उठी थी। पूरा शहर प्रदर्शन स्थल बन गया था।

बिहार के इन सात वीरों ने गोली खाई पर भी नहीं झुकने दिया था तिरंगा

अंग्रेज सरकार बिहार के सारे सीनियर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था। हर घर-घर में आजादी के गीत गाए जाने लगे थे। कॉलेजों में छात्र-शिक्षक भी आजादी का पाठ करने लगे थे। आंदोलन को रोकने के लिए अंग्रेज सरकार ने Bihar के सारे सीनियर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था।

सीनियर नेताओं की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन का नेतृत्व युवाओं के हाथों में आ गया था। अंग्रेज आंदोलन की चिंगारी को पहचान लिया था। इसीलिए उन लोगों ने लोगों को शांत करने के लिए और नेताओं की गिरफ्तारी को सही ठहराने के लिए अनेक कहानियां गढ़ी और रेडियो से प्रसारित की

Bihar के युवाओं ने तय कर लिया था करो या मरो

लेकिन आंदोलन रफ्तार पकड़ लिया था। Bihar के युवाओं ने तय कर लिया था करो या मरो। 10 अगस्त को तो लोग आंदोलन के लिए सड़क पर उतर गए। ये लोग पटना में एकजुट होने लगे।

ये अंग्रेजों की धमकी और दमन से आक्रोशित थे। इस कारण ही ये लोग बेखौफ सड़कों पर उतर गए थे। ब्रिटिश सत्ता को सीधी चुनौती दे रहे थे।

अंग्रेजों भारत छोड़ो, भारत माता की जय आदि नारों से आकाश गूंज रहा था। किसी को कोई खौफ नहीं रह गया था।

उत्तेजना कुछ ऐसी थी कि 10 अगस्त की रात लोग मुश्किल से सो सके।

11 अगस्त की सुबह हुई। लोग घरों से निकलने लगे। ये वे लोग थे जो अपनी आजादी के लिए इंतजार करने को तैयार नहीं थे। ये अपनी आजादी आज और अभी चाहिए थी। अपने इसी मंशा को लेकर तब का पटना का लाइफ लाइन माना जाने वाला अशोक राजपथ पर ये लोग एकत्रित होने लगे थे।

आंदोलनकारियों का जत्था बांकीपुर पहुंचा। यहां पर सभा हुई। आंदोलनकारियों को आजादी से कम कुछ भी मंजूर नहीं था। आंदोलनकारियों ने ठान लिया था कि आज यूनियन जैक का झंडा नहीं, अपना तिरंगा फहरेगा। अपनी इसी मंशा को लेकर भीड़ सचिवालय की ओर चल पड़ी।

सचिवालय की ओर आंदोलनकारियों को आते देखकर सुरक्षा बलों ने लाठी चार्ज कर दिया। परंतु इनके कदम डगमगाए नहीं, हर लाठी पड़ने के साथ इनके जोश बढ़ता गया। लोग सचिवालय तक पहुंच गए। तिरंगा लेकर बढ़ने लगे। दिन के करीब 11 बज रहे थे। बौखलाए हुए जिलाधिकारी डब्ल्यू जी ऑर्थर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया।

सचिवालय पर झंडा फहराने के लिए सबसे पहले अपने हाथ में झंडा लेकर मिलर हाई स्कूल के नौवीं के छात्र दे

वीपद चौधरी आगे बढ़े। देवीपद चौधरी की उम्र तब मात्र 14 वर्ष थी। देवीपद सिलहट के जमालपुर गांव के रहने वाले थे, जो अब बंग्लादेश में है।

अपनी आजादी के लिए ये सचिवालय की ओर बढ़ने लगे। अंग्रेजों ने अचानक इनके सीने में गोली मार दी। इससे वे गिर पड़े। लेकिन तिरंगा गिरता, इससे पहले ही पुनपुन हाई स्कूल के छात्र रायगोविंद सिंह ने आगे बढ़कर झंडा थाम लिया।

रायगोविंद पटना के ही दसरथा गांव के थे। अपनी आजादी के लिए ये तिरंगा लेकर जैसे ही अपने कदम को आगे बढ़ाया उन्हें भी गोली मार दी गयी। अब तिरंगा राममोहन राय सेमिनरी के छात्र रामानंद सिंह के हाथों में था।

रामानंद पटना के ही शहादत नगर गांव के थे। अंग्रेजों को चुनौती देते तिरंगा थामे वे बढ़ चले कि अगली गोली से वे भी वीरगति को प्राप्त हो गए। तब तक तिरंगा को पटना हाई स्कूल गर्दनीबाग के राजेंद्र सिंह लेकर आगे बढ़ने लगे।
राजेंद्र सारण के बनवारी चक गांव के रहने वाले थे। उनकी शादी हो चुकी थी।

गोलियां लगातार चल रही थीं। उन्हें भी गोली लगी और भारत माता की जय कहते हुए सदा के लिए भारत माता की गोद में सो गए। साम्राज्यवाद की क्रूरता को आजादी का दीवानापन चुनौती देता आगे बढ़ रहा था।

राजेंद्र को गिरने तक तिरंगा बीएन कॉलेज के छात्र जगपति कुमार थामकर आगे बढ़ने लगे

 

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