बिहार में ‘लिट्टी-चोखा’ का अनोखा मेला, प्रसाद के रूप में करते हैं ग्रहण: वैसे तो देश के लगभग हर राज्य में पूरे साल कई तरह के मेले का आयोजन होता है लेकिन बिहार के बक्सर जिले में अगहन माह के दौरान लगने वाला ‘लिट्टी-चोखा’ मेला कई मामलों में बेहद अनूठा और ख़ास है।
बिहार में ‘लिट्टी-चोखा’ का अनोखा मेला, प्रसाद के रूप में करते हैं ग्रहण
राजधानी पटना से करीब 150 किलोमीटर दूर बक्सर जिले में आयोजित होने वाले पंचकोशी परिक्रमा सह पंचकोश मेले की ख्याति बिहार में नहीं बल्कि देश भर में है। विश्व विख्यात बक्सर के इस मेले को लोग लिट्टी-चोखा मेला के नाम से भी जानते हैं। वैसे तो बिहार के कई व्यंजनों के देश-दुनिया के लाखों दिवाने हैं लेकिन जब बात ‘लिट्टी-चोखा’ की हो तो फिर क्या कहने।Liti Chokha Mela Bihar
पंचकोशी परिक्रमा सह पंचकोश मेला बुधवार से आरंभ हो गया जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आने लगे। जिले की पहचान बन चुके इस मेले को प्रदेश के साथ-साथ गैर प्रदेशों और जिलों में बसे लोग भी याद रखते हैं, एक दूसरे का समाचार पूछने वाले लोग अक्सर सवाल करते हैं, बक्सर में लिट्टी चोखा मेला कब बा।
पंचकोशी यात्रा के अंतिम दिन रविवार को विश्वामित्र की तपोभूमि चरित्रवन में लिट्टी-चोखा खाने के लिए श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा। इसके बाद श्रद्धालुओं ने जमकर लिट्टी-चोखे का आंनद उठाया। इस दौरान न तो अमीरी-गरीबी में कोई फर्क दिखा, न ही जाति-पाति का भेद। लोगों ने खुद लिट्टी-चोखा बनाया और खाया। वह भी एकसाथ जमीन पर बैठकर।
स्थानीय स्तर पर एक कहावत है कि ‘माई बिसरी, बाबू बिसरी, पंचकोसवा के लिट्टी-चोखा ना बिसरी।’ इसी से लिट्टी-चोखे के इस मेले के महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है। चाहे कितनी भी मुश्किल क्यों न हो, लोग पंचकोसी का लिट्टी-चोखा खाना नहीं भूलते हैं। लिट्टी-चोखा खाने के लिए ज्यादातर लोग एक दिन पहले ही बक्सर पहुंच चुके थे। वहीं रविवार को भी दिनभर लोग वाहनों में भर भरकर आते रहे। पूरा चरित्रवन लोगों से पटा रहा।
चारों तरफ धुआं ही धुआं दिखाई दे रहा था। एमवी कॉलेज, राम चबुतरा, नाथबाबा मंदिर, किला मैदान समेत अन्य जगहों पर लिट्टी-चोखा बनाने व खाने के लिए लोगों को हुजूम उमड़ा था। सुबह से लेकर रात तक लिट्टी बनाने वा खाने का सिलसिला चलता रहा। बक्सर के अलावे दूसरे जिले के लोग भी लिट्टी-चोखा खाने के लिए आये हुए थे।
Liti Chokha Mela Bihar
इसी के साथ पांच दिनों तक चलने वाले पंचकोसी यात्रा का समापन भी हो गया। इस दौरान शहर के मंदिरों में पूजा-अर्चना के लिए भी लोगों की भीड़ लगी रही। त्रेता युग से चली आ रही पंचकोसी यात्रा की शुरूआत अहिल्या धाम अहिरौली से होता है। इसके बाद लोग नदांव स्थित नारदाश्रम, भभुवर स्थित भार्गव मुनि आश्रम, नुआंव स्थित उद्दालक ऋषि आश्रम होते हुए अंतिम दिन विश्वामित्र की तपोभूमि चरित्रवन पहुंचते हैं।
आलू-बैगन की जमकर होती है बिक्री
लिट्टी-चोखे के इस मेले में आलू- बैगन की जमकर बिक्री हुई। इसके लिए मेला क्षेत्र में नई-नई दुकानें लगाई गई थी। मेले में आये लोगों इस दुकानों से आलू-बैगन की खरीदारी की। इसके साथ गोईंठा की भी खूब बिक्री हुई। मेले को लेकर यहां यूपी से भी गोईंठा मंगाया गया था।
महिलाओं करती हैं खरीदारी
मेले में आई महिलाओं ने जमकर खरीदारी की। कोई बेटी के लिए, तो कोई बहू के लिए खरीदारी कर रहही थी। टिकुली, चूड़ी व सिंदूर की खूब ब्रिकी हुई।
नाथ बाबा मंदिर, किला मैदान के पास, राम चबुतरा के पास दर्जनों नई-नई दुकानें सजी थी। इसके अलावा मिठाई की दुकानों पर भीड़ लगी रही।
घर-घर बनता लिट्टी-चोखा
पंचकोसी के अंतिम दिन घर-घर में लिट्टी-चोखा बना था। वैसे ज्यादातर लोग चरित्रवन में ही लिट्टी-चोखा बनाकर खाये। पर जो कोई किसी कारणवश यहां नहीं आ सके, उनके लिए घर पर ही लिट्टी-चोखा बनाया गया था। लोगों ने बताया कि प्राचीन काल से ही ऐसी मान्यता चली आ रही है कि पंचकोसी के अंतिम दिन लिट्टी-चोखा जरूर खाना चाहिए। क्योंकि प्रभु श्रीराम विश्वामित्र की तपोभूमि पर लिट्टी-चोखा खाये थे।
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार, मार्ग शीर्ष अर्थात अगहन माह के कृष्ण पंचमी को मेला प्रारंभ होता है। पहले दिन अहिरौली, दूसरे दिन नदांव, तीसरे दिन भभुअर, चौथे दिन बड़का नुआंव तथा पांचवे दिन चरित्रवन में लिट्टी चोखा-खाया जाता है।
लिट्टी चोखा बनाने में शुद्धता का पूरा ख्याल रखा जाता है| गाय के गोबर से बने उपले की आग से लिट्टी और चोखा को पकाया जाता है.