बिहार का फुलवारीशरीफ़, गंगा-जमुना तहजीब की मिशाल (Phulwari Sharif in Bihar): हर राज्य की अपनी संस्कृति होती है। बैशाख नए साल का स्वागत ही नहीं बल्कि ग्रीष्म ऋतू का भी आगमन होता है।भारत के प्रत्येक राज्य में बैशाख के स्वागत का अपनी अलग परंपरा और तरीका है। उसी तरह बैशाख की पहली तिथि को मिथिलांचल में अनूठे अंदाज में मनाने की परंपरा है। इस दिन लोग घरों में चूल्हे नहीं जलाते हैं।Phulwari Sharif in Bihar
Phulwari Sharif in Bihar
चैत की रात का बनाया खाना दूसरे दिन यानी बैशाख की पहली तिथि को खाया जाता है इसलिए इसे बासी पर्व कहा जाता है। ग्रीष्म ऋतु के आगमन पर मनाया जाने वाला यह पर्व शीतलता का संदेश देता है लिहाजा लोग इसे जूड़शीतल भी कहते हैं। इस दिन अल सुबह घर के बड़े सदस्य अपने से छोटों के सिर पर जल देकर आशीर्वाद देते हैं।
व्याकरणाचार्य पं. कृपानंद मिश्र बताते हैं कि बैशाख में सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं। ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत हो जाती है। इस मौके पर लोग घड़ा में जल भरकर दान करते हैं।
बिहार का फुलवारीशरीफ़, गंगा-जमुना तहजीब की मिशाल
खनखाह मुजीबिया, शीश महल, शाही साँगी मस्जिद, इमरात शरीयत जैसे एतिहासिक धरोहरों से फुलवारीशरीफ (Phuwaril Sharif in Bihar) भडा परा है। इसकी तीव्रता और भारत में सूफी संस्कृति का जन्म और विकास के साथ जुड़ा हुआ है। बिहार की ही तरह इसका एक लंबा धार्मिक इतिहास है।
कहा जाता है कि प्राचीन समय के सूफी संतों के धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक फुलवारी शरीफ एक ऐसा क्षेत्र था जहां सूफी संतों ने प्रेम और सहनशीलता का संदेश फैलाया था।
मस्जिद क्षेत्र की समृद्ध स्थापत्य अतीत के अवशेष भालू. मुगल सम्राट हुमायूं द्वारा लाल बलुआ पत्थर में निर्मित मस्जिद पर्यटकों के मुसलमानों के लिए मुख्य आकर्षण में से एक है।
मस्जिद के पास एक (लाल शाह बाबा के मंदिर के मकबरे) है। यह लाल मियां की दरगाह के रूप में जाना जाता है|
आपको बता दे कि इमारत-ए-शरिया, खानकाह मुजीबिया और महाबीर मंदिर के चढ़ावे से गरीबी के लिए चलने वाला बिहार का प्रसिद्ध महावीर कैंसर हॉस्पीटल यही स्थित और हाल ही में बनाया गया बिहार का एम्स भी यहीं बनाया गया है।
यहां की धार्मिक और एतिहासिक धरोहरे पर्यटकों को बहुत लुभाती है। काफि संख्या में लोग यहां आते है। बिहार हर धर्म वालों के लिए खास है और दुनिया के लिए मिशाल है।