वैशाली- भगवान् बुद्ध की ऐतिहासिक नगरी

वैशाली- भगवान् बुद्ध की ऐतिहासिक नगरी (Vaishali – The historical city of Lord Buddha): वैशाली का इतिहास काफी मजबूत है। वैशाली एक सुंदर गांव है जहां आम और केला के बड़े – बड़े बाग और खेत पाएं जाते है। वैशाली पर्यटन, अद्भुत बौद्ध स्‍थलों के लिए जाना जाता है, यह एक सुंदर गांव है। वैशाली को शुरूआत से ही पर्यटक की दृष्टि से एक विशेष स्‍थान व अध्‍याय के रूप में देखा गया है। अगर इसके इतिहास के बारे में बात की जाएं तो वैशाली का उल्‍लेख, रामायण के काल से होता आ रहा है। महाभारत में भी वैशाली का उल्‍लेख है।

Vaishali – The historical city of Lord Buddha

भगवान महावीर के जन्‍म से पहले, यह शहर लिच्‍छवि राज्‍य की राजधानी हुआ करता था। इस स्‍थान का गहरा आध्‍यात्मिक महत्‍व है, यह एक गणराज्‍य है जहां भगवान महावीर का जन्‍म हुआ है। भगवान बुद्ध ने इस स्‍थल को अपने मार्गदर्शन से यादगार बना दिया।

Vaishali is the historical city of India

वैशाली गंगा घाटी का नगर है, जो आज के बिहार एवं बंगाल प्रान्त के बीच सुशोभित है। इस नगर का एक दूसरा नाम ‘विशाला’ भी था। इसकी स्थापना महातेजस्वी ‘विशाल’ नामक राजा ने की थी, जो भारतीय परम्परा के अनुसार इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए थे। इसकी पहचान मुजफ्फरपुर ज़िले में स्थित आधुनिक बसाढ़ से की जाती है। वहाँ के एक प्राचीन टीले को स्थानीय जनता अब भी ‘राजा विशाल का गढ़’ कहती है।

इतिहास

प्राचीन नगर ‘वैशाली’ Vaishali, जिसे पालि में ‘वैसाली’ कहा जाता है| वैशाली भग्नावशेष वर्तमान बसाढ़ नामक स्थान के निकट स्थित हैं जो मुजफ्फरपुर से 20 मील दक्षिण-पश्चिम की ओर है। इसके पास ही ‘बखरा’ नामक ग्राम बसा हुआ है। इस नगरी का प्राचीन नाम ‘विशाला’ था, जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में है। गौतम बुद्ध के समय में तथा उनसे पूर्व लिच्छवी गणराज्य की राजधानी यहाँ थी। यहाँ वृजियों का संस्थागार था, जो उनका संसद-सदन था। वृजियों की न्यायप्रियता की बुद्ध ने बहुत सराहना की थी।

न्याय व्यवस्था

वैशाली (Vaishali) के संस्थागार में सभी राजनीतिक विषयों की चर्चा होती थी। यहाँ अपराधियों के लिए दंड व्यवस्था भी की जाती थी। कथित अपराधी का दंड सिद्ध करने के लिए विनिश्चयमहामात्य, व्यावहारिक, सूत्रधार अष्टकुलिक, सेनापति, उपराज या उपगणपति और अंत में गणपति क्रमिक रूप से विचार करते थे और अपराध प्रमाणित न होने पर कोई भी अधिकारी दोषी को छोड़ सकता था। ‘दंड विधान संहिता’ को ‘प्रवेणिपुस्तक’ कहते थे।

वैशाली को प्रशासन पद्धति के बारे में यहाँ से प्राप्त मुद्राओं से बहुत कुछ जानकारी होती है। वैशाली के बाहर स्थित ‘कूटागारशाला’ में तथागत कई बार रहे थे और अपने जीवन का अंतिम वर्ष भी उन्होंने अधिकांशत: वहीं व्यतीत किया था। इसी स्थान पर अशोक ने एक प्रस्तर स्तंभ स्थापित किया था।

Leave a Comment