Digital Bhunjawala Jharkhand: झारखंड के गोड्डा का एक भूंजावाला इन दिनों काफी मशहूर हो चला है. क्योंकि यह भूंजावाला कैशलेस है. यह भूंजावाला पीएम नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया से अपने को जोड़कर कैशलेस भूंजा बेचता है. अगर आप इस भूंजावाले के पास नकद पैसा लेकर भूजा खरीदने जाते हैं, तो आपको भूजा नहीं मिलेगा और निराशा ही हाथ लगेगी. भूंजा पांच रुपये का हो या दस का, लेना है तो कैशलेस ट्रांजेक्शन ही आपको करना होगा. नकद में बात नहीं बनेगी.
Digital Bhunjawala from Godda Jharkhand
बिहार, झारखंड, यूपी और बंगाल में भूंजा खाने का विशेष प्रचलन है. इन राज्यों में शहरों और कस्बों में सड़क के किनारे और बाजारों में भूंजा बेचकर जीवीकोपार्जन करनेवालों की कमी नहीं है. भूंजावालाें की अपनी एक अलग पहचान होती है.
अच्छी नौकरी नहीं मिलने के कारण शुरू किया भूंजा बेचना
झारखंड के गोड्डा के सदर प्रखंड का लहरी टोला निवासी संजय कुमार रोजाना करीब सौ लोगों को कैशलेस ट्रांजेक्शन की सीख देता है. संजय ने समाजशास्त्र में एमए की पढ़ाई की. वो भी प्रथम श्रेणी में. पढ़-लिख लेने के बाद उसे जब कोई ढंग की नौकरी हाथ नहीं लगी तो संजय ने खुद का कारोबार जमाना बेहतर समझा. लेकिन उसके पास बड़ा कोई व्यवसाय शुरू करने के लिये पूंजी नहीं थी. लिहाजा जो था उसी से व्यवसाय की शुरुआत की. पिता यही फुटपाथ पर रेहड़ी लगाया करते थे. संजय ने अपने पिता के काम को आगे बढ़ाने का फैसला किया और भूंजा बेचने का काम शुरू किया.
संजय का कहना है कि जब भारत सरकार और खुद देश के प्रधानमंत्री भी कैशलेस व्यवस्था को अपनाने की अपील लोगों से कर रहे हैं, तो मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं इसमें अपना योगदान करूं. मैं पढ़ा-लिखा हूं और मुझे यह आता है, इसलिये मैंने अपने व्यवसाय में कैशलेश को अपनाया है और लोगों को भी इसके लिये प्रेरित कर रहा हूं. संजय ने बताया कि समस्या तो होती है, लेकिन अब लोग भी इसे समझना चाहते हैं.
लिहाजा ग्राहकों का भी सहयोग मिल रहा है. संजय का कहना है कि यदि हर इंसान सचेत हो जाये तो कैशलेस व्यवस्था का सपना साकार होकर रहेगा. संजय अपने यहां भूंजा खरीदने आनेवाले ग्राहकों से कहते हैं कि कैशलेस व्यवस्था को अपनाये. जो ग्राहक नकद का आग्रह करता है, उससे संजय बड़ी ही विनम्रता से कहते हैं कि भाईसाहब माफ करें, हमारे यहां नकदी नहीं चलती.
सराहनीय है कोशिश
संजय की कोशिश की सभी सराहना कर रहे हैं. संजय ने इग्नू से बीए और एमए किया है. संजय भूंजा जरूर बेचते हैं, लेकिन पढ़ाई में भी अव्वल रहने के कारण उनके पास जानकारियों का खजाना है. संजय के दिव्यांग पिता गरीब थे. रेहड़ी लगाते थे. आर्थिक तंगी के कारण संजय अच्छे स्कूल-कॉलेज में दाखिला नहीं ले सके. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) से स्नातक और स्नातकोत्तर किया. लेकिन अच्छी नौकरी नहीं मिल सकी. अब संजय को इसका मलाल नहीं है. आज वह अपनी पूरी शिद्दत के साथ अपने काम में लीन है. संजय की पत्नी भी उनका पूरा हाथ बंटाती हैं. संजय कहते हैं कि कोई काम छोटा नहीं होता. मेहनत और लगन से हर राह आसान हो जाती है. आज मैं इतना कमा लेता हूं कि परिवार का भरण-पोषण आसानी से कर सकूं.
कैशलेस व्यवस्था को आगे बढ़ाने में लगे
अपनी कैशलेस मुहिम के बारे में संजय ने कहा कि मैं पढ़ा-लिखा हूं, लेकिन भूंजा बेचने में तो पढ़ाई-लिखाई ज्यादा काम आती नहीं है. मैंने सोचा कि एक पढ़ा-लिखा इंसान यदि भूंजा बेचे तो इस काम को और कितनी बेहतरी से कर सकता है. बस यही सोच भूजा बेचने में लग गया. मुझे लगा कि मेरी शिक्षा कैशलेस व्यवस्था को आगे बढ़ाने के काम आयेगी.
बस फिर क्या था, कैशलेस व्यवस्था की बड़ी मुहिम में अपनी छोटी सी भूमिका करने का लक्ष्य लेकर भूंजा बेचने लगा. लोगों को जागरूक कर जब इस मुहिम से जोड़ता हूं तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. शुरू में परेशानी हुई. कई लोगों ने कैशलेस को फुटपाथ के व्यवसाय में शामिल नहीं करने की नसीहत दी. पर मैंने चिंता नहीं की. आगे बढ़ता गया और आज रोजाना लगभग 100 से अधिक ग्राहक मेरी रेहड़ी पर आकर डिजिटल भुगतान कर भूंजा लेते हैं.
“कैशलेस भूंजा वाला” नाम से मशहूर
मेरा नाम भी कई ने कैशलेस भूंजावाला रख दिया है. कैशलेश भूंजा बेचने में मुझे जिला ई-मर्चेंट टीम ने भी मदद की. टीम के सदस्यों ने मुझे विभिन्न कैशलेस ट्रांजेक्शन एप की जानकारी दी. इनके सुरक्षित उपयोग के बारे में बताया. अब मैं पांच, दस व बीस रुपये तक का भुगतान यूएसएसडी व भीम एप से लेता हूं. साथ ही रोजाना कम से कम सौ लोगों को कैशलेस ट्रांजेक्शन अपनाने के लिये अपील करता हूं.