महाराजगंज लोकसभा से नोनिया होगा प्रत्यासी? क्या अतिपिछड़ा सम्मलेन की लाज रखेगा जदयू?

Maharajganj Loksabha 2019: लोकसभा का चुनाव नजदीक आ चूका है। पुरे देश में हर पार्टी अपने अपने तरीके से लोगो को लुभावने के साथ, टिकट बंटवारे और गठबंधन पर जोर शोर से कार्य कर रही है। आगामी लोकसभा को चुनाव को लेकर बिहार की राजनीती भी काफी गरम है और अभी तक किसी भी दाल ने अपने सीटों के प्रत्यासी घोषित नहीं किये। कुछ महीनो पहले कई दलों द्वारा हुए अतिपिछड़ा सम्मलेन भी काफी जोर शोर से बनाया गया जिसमे अतिपिछड़ों की भागीदारी और एकता भी देखने को मिली। बिहार की राजनीती में जहाँ तक बात करे तो बिहार के साथ देश में अतिपिछड़ों का वोट ही सबसे ज्यादा निर्णायक रहा है लेकिन राजनीती उपेक्षा भी सबसे ज्यादा इसी वर्ग का हुवा है।

कई आंदोलन और अतिपिछड़ों की सक्रियता देखकर लगता है कि इस बार अतिपिछड़ों कि अनदेखी किसी भी दल को धूल चटा सकती है। ऐसे ही एक अतिपिछड़ा प्रमुख सीट की आज हम बात करते हैं वो हैं – महाराजगंज।

महाराजगंज लोकसभा से नोनिया होगा प्रत्यासी?

महाराजगंज लोकसभा एक ऐसा लोकसभा क्षेत्र जहाँ से सांसद चुन प्रधानमन्त्री तक का सफर चंद्रशेखर ने पूरा किया है। अगर वोटरों की बात करे तो यहाँ पिछले चुनाव में 8,46,654 वोट पड़े। जहाँ अतिपिछड़ों का वोट निर्णायक है लेकिन आजदी के बाद से 1957 से लेकर 2014 तक 14 लोकसभा चुनाव हुए लेकिन एक भी अतिपिछड़ा उम्मीदवार किसी पार्टी से नहीं रहा। हमेशा सामान्य वर्ग के लिए ये सीट सुरक्षित रहा है। अब सवाल ये है कि जब अतिपिछड़ा जब अतिपिछड़ा बाहुल्य सीट पर खड़ा नहीं हो रहा तो उसकी राजनितिक भागीदारी कितनी है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रमुख वर्गों के वोट निम्न प्रकार हैं –

अतिपिछड़ा – 450000 वोट
सामान्य – 280000 वोट
पिछड़ा/मुस्लिम/अनुसूचित जाति – 200000 वोट

क्या अतिपिछड़ा सम्मलेन की लाज रखेगा जदयू?

राजनितिक धुर्वीकरण ऐसा है कि आज तक किसी भी अतिपिछड़ा को ही पता नहीं होगा कि महाराजगंज लोकसभा में उनका वोट का स्तर क्या है। ऐसे में बस सुनने को ही आ रहा है कि जदयू यहाँ उम्मीदवार खड़े करेगा और कभी गणेश भारती तो कभी टुनटुन प्रसाद तो कभी संतोष महतो आदि बस नाम ही गिनाये जा रहे हैं। कहीं फिर से राजनितिक उपेक्षा का शिकार या लुभावने वादे तक ही तो ये सिमित नहीं हो जाएगा? वैसे जदयू के अतिपिछड़ा सम्मलेन ने पुरे बिहार में धूम मचाई थी। वैसे सूत्रों के अनुसार सर्वप्रथम पूर्व विधान पार्षद गणेश भारती और फिर पिछड़ा आयोग के पूर्व सदस्य टुनटुन प्रसाद के नाम पर विचार चल रहा है। दोनों जदयू के शुरुवाती दिनों के विश्वासी के साथ अनुभवी नेता भी है और जिस जाति नोनिया से ये आते हैं उस जाति का वोट ही यहाँ लगभग 140000 वोट हैं जो किसी भी चुनाव के लिए निर्णायक वोट हैं। सबसे ख़ास बात है कि ये दोनों नेता कि अतिपिछड़ों में पैठ और पकड़ भी काफी है। नितीश कुमार कि जहाँ तक विचार कि बात है तो 1995 में शुरू हुयी समता पार्टी से ये दोनों नेता विधान सभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं और पार्टी को पुरे बिहार में सबसे ज्यादा वोट पाकर सम्मान कि स्थिति में खड़ा किया था। अफ़सोस ये है कि पार्टी कोई हो लेकिन लोकसभा में अतिपिछड़ों और खासकर नोनिया कि भागीदारी शून्य होना शर्मनाक बात है जो कि पुरे बिहार में नोनिया समुदाय कि आबादी ही 10% अनुमान लगाया जाता है। अब देखना ये है कि क्या जदयू नोनिया समुदाय को भागीदारी देकर अतिपिछड़ों/नोनिया के वोट बैंक पर ट्रम्प कार्ड खेलेगी या हमेशा कि तरह उपेक्षा ही करेगी।

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