पटना [जेएनएन]।
पटना हाईकोर्ट ने आज राजद विधायक सरोज दुबे द्वारा नई सरकार के गठन के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि जब सदन में बहुमत साबित हो चुका है तो इस मामले में कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा कि पूरी संवैधानिक प्रक्रिया के तहत सरकार का गठन किया गया है।
सोमवार को हाईकोर्ट में बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई वाली नई सरकार के गठन को चुनौती देने वाली याचिका लालू यादव की पार्टी राजद ने याचिका दायर की थी जिसमें बहुमत परीक्षण से जुड़े मसले पर सुनवाई हुई।
चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए बड़हरा विधायक सरोज दुबे और अन्य लोगों के खिलाफ दायर की गई याचिका पर सुनवाई की और कहा कि सरकार का गठन एक संवैधानिक प्रक्रिया है और सरकार बन चुकी है और उसने विधानसभा में अब अपना बहुमत साबित कर लिया है, एेसे में कोर्ट इस मामले में क्या करेगा?
जानिये क्या था पूरा मामला…
कोर्ट में बिहार में नई सरकार के गठन के खिलाफ पहली याचिका बड़हरा से राजद के विधायक सरोज यादव ने दायर की थी। जबकि दूसरी याचिका नौबतपुर के समाजवादी नेता जितेंद्र कुमार ने दायर की थी।
नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ गठबंधन का एलान किया और 27 जुलाई को छठी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनके साथ ही उपमुख्यमंत्री के तौर पर बीजेपी के नेता सुशील मोदी ने शपथ लिया।
उसके बाद महागठबंधन टूटने से खफा राजद ने लगातार नई सरकार के गठन को लेकर विरोध किया और उसके बाद राज्यपाल के फैसले पर भी अंगुली उठाई थी। राजद ने फैसले पर हैरानी जाहिर करते हुए कहा था कि सबसे ज्यादा विधायक जब राजद के हैं तो पहले सरकार बनाने का न्यौता राजद को मिलना चाहिए था, लेकिन नियमों को दरकिनार कर नए गठबंधन को मौका दिया गया।
सरकार के गठन के खिलाफ लालू यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने भी कोर्ट जाने की बात कही थी और अब याचिका खारिज होने के बाद राजद की ओर से मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही जा रही है।
बोम्मई मामले का हवाला दिया था राजद ने
राजद का कहना था कि हर जनादेश का अपना एक चरित्र होता है और बिहार में दलितों, अल्पसंख्यकों और ऊंची जातियों के कुछ प्रगतिशशील तबकों ने पूर्ववती सरकार के लिए मतदान किया था लेकिन जदयू के महागठबंधन के तोड़ देने से वह जनादेश गिर गया है। पार्टी का तर्क था कि भाजपा के साथ सरकार बनाने के लिए कुमार को आमंत्रित करने का राज्यपाल का फैसला बोम्मई मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है।