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एलियन’ पर एक नयी खोज, हम पहुंचे उनकी दुनिया के और करीब

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दुनियाभर में लोगों को यह जानने की बेहद उत्सुकता है कि क्या हमारी पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर भी जीवन का संभव है. इसके बारे में जानने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक शोधरत हैं. नासा वैज्ञानिक ब्रह्मांड के अन्य ग्रहों पर जीवन तलाशने के मिशन पर लगे हुए हैं. आज के नॉलेज में जानते हैं एलियंस की खोज में हम कहां तक पहुंच चुके हैं और क्या हैं आगे के मिशन, क्या हो सकता है

कुछ दिनों पहले नासा के रिसर्चरों ने कैलिफोर्निया की एक ङील में आर्सनिक जहर पर पलने वाले जीवाणु की खोज का ऐलान कर के पूरे वैज्ञानिक जगत में खलबली मचा दी थी। इससे हम यह सोचने को मजबूर हुए हैं कि जीवन दुर्गम से दुर्गम और कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी पनप सकता है। यदि हमारी पृथ्वी पर ही इस तरह का जीव-रूप हो सकता है, तो दूसरे ग्रहों पर भी ऐसे जीव-रूप संभव हैं, जहां की परिस्थितियां हमें जीवन के अनुकूल नहीं दिखाई देतीं।

इस जीवाणु की खोज से कुछ समय पहले ही वैज्ञानिकों की एक टीम ने हमें यह बताया था कि ब्रह्मांड में मौजूद सितारों की संख्या वर्तमान अनुमान से तीन गुना ज्यादा है। इससे जीवन -अनुकूल ग्रहों या नयी पृथ्वियों के पाए जाने की संभावनाएं भी बढ़ गयी हैं। खगोल शास्त्रियों ने इसी वर्ष हमारे सौर मंडल से बाहर एक जीवन-अनुकूल ग्रह की खोज का दावा भी किया था। नियमित रूप से मिल रही नयी जानकारियों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि परग्रही जीवन या एलियंस के बारे में सबूत लगातार बढ़ रहे हैं।

एलियंस को हमने अभी फिल्मों में देखा है। यह एक काल्पनिक सवाल है कि यदि कभी हमारी मुलाकात किसी एलियन अथवा परग्रही प्राणी से हो गई तो उसका रंगरूप और हुलिया कैसा होगा? क्या वह साइंस फिक्शन फिल्मों में दिखाए गए बड़े-बड़े सिर और बड़ी-बड़ी आंखों वाले छोटे कद के प्राणियों जैसा होगा या झींगा मछली की शक्ल वाला कोई दैत्याकार जीव?

हालांकि प्रो. हॉकिंग कहना है कि एलियंस का अस्तित्व तो है, लेकिन उनके करीब जाने की कोशिश खतरनाक साबित हो सकती है। परग्रही प्राणियों से हमारी मुलाकात के बारे में मोटे तौर पर दो संभावनाएं व्यक्त की गई हैं। या तो पड़ोसी ग्रहों और चंद्रमाओं की यात्रा करते हुए हमारा साक्षात्कार पारलौकिक जंतुओं से हो जाए या फिर हम दूरवर्ती सौर मंडलों में पृथ्वी जैसे ग्रहों पर रहने वाले प्राणियों से फोन पर बात करने में सफल हो जाएं। पारलौकिक प्राणी कैसे दिखाई देंगे, यह निर्भर करेगा कि उनसे कहां और कैसे मुलाकात होती है।

यदि हमारा पहला संपर्क अपने ही सौरमंडल के दायरे में होता है तो कम से कम हम वहां की परिस्थितियों के बारे में अब तक की जानकारियों के आधार पर कुछ अनुमान लगा सकते हैं। कई स्थान पृथ्वी जैसी कार्बन बायोकेमिस्ट्री और पानी पर आधारित जीव-जंतुओं के लिए उपयुक्त हो सकते हैं। हो सकता है मंगल की सतह के नीचे की मिट्टी इतनी गरम हो कि वहां पृथ्वी के बैक्टीरिया-जीवाणु पनप सकें।

यह भी संभव है कि सौरमंडल के बाहरी चंद्रमाओं के समुद्रों में विशाल जंतु तैर रहे हों। इनमें बृहस्पति का चंद्रमा, यूरोप का उल्लेख खासतौर से किया जा सकता है। इस बात की पूरी संभावना है कि यूरोप पर पसरी हुई बर्फ की चादर के नीचे पानी का गहरा समुद्र हिचकोले ले रहा हो।

वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के खगोल-जीवविज्ञानी डर्कशुल्जमाकुश के अनुसार यूरोप के भीतरी गरम स्रोतों से निकलने वाला पानी जीवाणुओं की  बहुत  बड़ी आबादी की जरूरत को पूरा कर सकता है। यदि वहां जीवाणु हैं तो उनका भक्षण करने वाले बड़े जीव भी हो सकते हैं। कुछ अन्य खगोल-जीवविज्ञानी ऐसे जीवन की संभावना तलाश रहे हैं, जो पानी पर आधारित नहीं है।

हमारे सौरमंडल में अधिकांश स्थान या तो बहुत गरम हैं या बहुत ठंडे। लोरिडा में फाउंडेशन फॉर अप्लाइड मॉलिक्युलरइवोल्यूशन के वैज्ञानिक स्टीवन बेनेर का कहना है कि इन स्थानों पर ऐसे कई तरल पदार्थ मौजूद हैं, जो जीव-रसायनों का आधार हो सकते हैं।

मसलन शुक्र के बादलों में तेजाब की बूंदें मौजूद हैं और अरबों वर्ष पहले इस ग्रह की सतह पर तेजाब के जलाशय रहे होंगे। क्या पता शुक्र पर ऐसे प्राणियों का विकास हुआ हो, जो कि तेजाब की खुराक पर जिंदा हों। तेजाब पर जिंदा रहने वाले जीवों का निर्माण रसायन-प्रतिरोधी पदार्थो से करना पड़ेगा। बेनेर ने ऐसे शुक्रवासियोंकी कल्पना की है, जो पारदर्शी कांच से बने हुए हैं।

हमारे सौरमंडल में कुछ स्थान ऐसे हैं, जहां सतही झीलें और समुद्र मौजूद हैं, लेकिन इनमें पानी नहीं है। शनि के चंद्रमा टाइटन पर मीथेन और इथेन की ठंडी झीलें पाई गई हैं। इन ठंडी ङीलों का मतलब यह है कि वहां रासायनिक क्रियाएं बहुत धीमी गति से होती होंगी। शुल्ज-माकुशने ऐसे जीवों की आयु 10000 वर्ष या उससे अधिक होने का अनुमान लगाया है।

यदि दूसरे सौर मंडलों में किसी परग्रही सभ्यता का वास है तो वह हमसे संपर्क कैसे करेगी? पृथ्वी वासियों से संपर्क करने के लिए वह रेडियो तरंगों या लेजर बीम भेजने और और ग्रहण करने में सक्षम होनी चाहिए या उनके पास ऐसा माध्यम होना चाहिए, जो प्रकाश वर्षो की दूरी पार कर संदेश भेज सके या ग्रहण कर सके।

यदि वे इसमें सचमुच सक्षम हैं तो हमें यह मान लेना चाहिए कि वे अत्यंत उन्नत जीव हैं। इनके पास ऐसे अंग हैं, जो एक-दूसरे से संपर्क करने के लिए कुदरती तौर पर रेडियो वेव छोड़ते हैं। लेकिन इसके लिए सिर्फ बुद्धिमान होना ही काफी नहीं है। पृथ्वी पर मनुष्य ने इसलिए प्रगति की है क्योंकि वह सामाजिक प्राणी है। पृथ्वी को संदेश भेजने में सक्षम पारलौकिक प्राणी भी अवश्य ही किसी न किसी रूप में सामाजिक होंगे। हालांकि उनका सामाजिक ताना-बाना हमसे भिन्न हो सकता है।

एलियंस के बारे में तमाम अटकलों और कल्पनाओं के बावजूद वस्तुस्थिति यह है कि अभी हमारे हाथ कोई ठोस चीज हाथ नहीं लगी है। फिर भी अंतरिक्ष अनुसंधान से कुछ अच्छे संकेत अवश्य मिले हैं। जैसा कि हम जानते हैं, पृथ्वी पर जीवन का फामरूला डीएनए में कैद है। लेकिन वैज्ञानिकों का ख्याल है कि पृथ्वी के जीवन की उत्पत्ति डीएनए से नहीं, बल्कि उसके करीबी रिश्तेदार आरएनए से हुई थी।

सभी प्रकार के जीवों में आरएनए अभी भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 1969 में ऑस्ट्रेलिया में एक उल्का पिंड गिरा था। 2008 में ब्रिटेन के इंपीरियल कॉलेज की जीटामार्टिस ने इस उल्का पिंड की संरचना का विस्तृत अध्ययन करने के बाद बताया कि इसमें आरएनए  के प्रमुख रासायनिक तत्व मौजूद हैं और किसी परग्रही स्रोत से ही इनका उद्गम हुआ है।

इससे एक बात जरूर स्पष्ट हो जाती है कि जीवन के जटिल अंग अंतरिक्ष में मौजूद हैं। कार्डिफ यूनिवर्सिटी में कार्य कर रहे एशियाई मूल के जीव-खगोल विज्ञानी चंद्रा विक्रमसिंघे का तो दावा यह है कि हम सब एलियंस हैं। उनके मुताबिक करीब 380करोड़ वर्ष पहले अंतरिक्ष से पृथ्वी पर जीवन के पहले बीजों का आगमन हुआ था।

पारलौकिक सभ्यताओं की खोज के लिए लगभग 50वर्ष पहले ‘सेटी’ का गठन हुआ था। तब हमें सौरमंडल से बाहर किसी ग्रह की जानकारी नहीं थी, लेकिन आज 400 से अधिक ग्रहों का पता चल चुका है। नए ग्रहों की खोज के साथ यह आशा भी बंध रही है कि अधिक उन्नत टेक्नोलॉजी से लैस होने के बाद हम एक न एक दिन ऐसा ग्रह खोज लेंगे, जहां जीवन के असार मौजूद हों।

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