भोजपुरी साहित्य और संस्कृति के जनक “भोजपुरी के शेक्सपियर” भिखारी ठाकुर

भोजपुरी साहित्य और संस्कृति के जनक “भोजपुरी के शेक्सपियर” भिखारी ठाकुर(Shakespeare of Bhojpuri Bhikhari Thakur): 1897 का साल था और कुतुबपूर दियरा,जिला छपरा का एक गाँव….एकदम से गरीबों और भिखारियों के मुफीद ही एक ऐसा गाँव जहाँ 18 दिसंबर को एक अनमोल “भिखारी” का जन्म हुआ।एक ऐसे “भिखारी” का जन्म जिसने भोजपुरी साहित्य और संगीत की झोली को अपने योगदान से इतना भरा है कि अगर भोजुरी संगीत और साहित्य से भिखारी को निकाल दें तो भोजपुरी दलिद्र हो जाये।जी हाँ आज भिखारी ठाकुर का जन्मदिन है।

भिखारी पेशे से नाई थे,दाढ़ी बाल बनाते थे और ईलाके के जमींदारों के बदन पर तेल पिला धुरमुसांग मालिश करते थे।भिखारी ठाकुर ने कभी कलम नही छुआ लेकिन कब हाथ मे चलने वाले उस्तुरे को सरस्वती की कृपा लग गई और वो भोजपुरिया साहित्य संगीत का पताका बन गई ये सब एक विचित्र रोचक किस्सा है जिसे भिखारी ठाकुर खुद अपने लिखे दोहे और गीत मे सुनाते हैं। लोगो के गोरे काले गाल पर से दाढ़ी हटाने वाले भिखारी के अंदर न कब ये धार पैदा हो गई कि वो समाज के उपरी खाल को छिल अंदर से समस्याओं का लिचपिचापन खिंच खिंच निकालने लगा। ये सब एक संघर्ष की गाथा का गौरवशाली इतिहास है। नाई के नौआई से उकताया भिखारी जब गाँव छोड़ बंगाल के खड़गपुर पहुँचे तो ये दौर भिखरिया नौआ के भिखारी ठाकुर बनने की शुरूआत का दौर था।

Shakespeare of Bhojpuri Bhikhari Thakur

बाल दाढ़ी बनाने के दौरान भिखारी कुछ कुछ दोहे और एकदम देशी खाँटी गीत गा के नीचे पीढ़ा पटरी पर बैठ बाल बनवाते अपने ग्राहकों को सैलुन वाला मजा देते थे और यही छोटे छोटे गीत दोहे खड़गपुर में आ के गीतमाला बनने लगे। यहाँ भिखारी ने एक रामलीला पार्टी ज्वाईन कर ली और उसी में गाने बजाने लगे।फिर उसके बाद उड़ीसा के पुरी मे भी जा कुछ दिना राम नाम पर लीला की। पर भिखारी ठाकुर को तो जगत को अपनी लीला दिखानी थी जिसे नियती ने तय कर रखा ही था और आखिरकर वो समय आ ही गया जब भिखारी ठाकुर अपना दल बना अपनी तब की खाँटी देशी नौटंकी पार्टी बनाई और बिहार बंगाल में घुम घुम नाटक नौटंकी परफॉर्म करने लगे।

यहीं से भिखारी ठाकुर ने वो रचा बुना और सुनाया जिसकी प्रासंगिकता की बुनावट आज तक भी ढीली नही पड़ी।भिखारी जब समाज की विसंगतियों पर लिखते तो कबीर जैसे निर्भिक हो जाते और प्रेम पर लिखते तो जायसी जैसे छलकते। भिखारी के नाटक तब के बिहार और खासकर भोजपुरिया बिहार और उत्तर प्रदेश के समाज के शोधपत्र हैँ जिन्हेँ बिना पढ़े और सुने आज का भी समाजशास्त्र का विद्यार्थी अधुरा है।

भिखारी अपने नाटको मे जब समाजिक विसंगतियों को उठाते और सामाजिक सरोकारों को पिरोते हैं तो अपनी बात कहने और अपनी भाषा में कह के जनमानस तक बात सहजता से पहुँचा देने की विधा मे कभी शेक्सपियर के कपार पर सवार दिखते हैं तो कभी ब्रेख्त के कंधे पर।आज का बुद्धिजीवी भोजपुरी वर्ग उन्हे भले भोजपुरी का शेक्सपियर बोल गर्वान्वित हो जाता है पर भिखारी ठाकुर भोजपुरी के भिखारी ठाकुर ही थे।

“भोजपुरी के शेक्सपियर” भिखारी ठाकुर

Shakespeare of Bhojpuri Bhikhari Thakur
Shakespeare of Bhojpuri Bhikhari Thakur

भिखारी के रचनाओं मे नारी उतनी ही केंद्र में है जितनी राधा के केंद्र में कृष्ण।मतलब प्रेम और विरह हो या फिर एक नारी होने के अभिशाप का काला दर्शन हो सबको भिखारी ने बड़े ठहर के जोर लगा के उठाया है।बिदेशिया लिख भिखारी एक पुरबिया नारी के विरह का “भोजपुरिया पदमावत्” लिख देते हैं तो जब वो बेटीबेचवा नाटक लिखते हैं तो मानो तीन चौकी से बने मंच पर पुरे समाज को नंगा ला खड़ा कर देते हैं जहाँ चंद पैसों के खातिर एक फूल सी बेटी को एक बुढ़े बैल के हाथों बेच दिया जाता है।

 

“रूपिया गिनाई लिहला,पगहा धराई दिहला।।चेरिया के छेरिया बनवऊल हे बाबूजी”

के बोल को सुनते जैसे उस बेटी का दर्द कानों से हो कब हमारे जज्बातों मे घुल अंदर तुफान उठाने लगता है,ये भिखारी का जादू है और आईना दिखाने का हुनर है।दिल्ली बंबई के बड़े बौद्धिक वर्ग से ताल्लुक रखने वाले और बड़े बड़े नामचीन संस्थानों और विश्वविद्यालय से नारीवाद का ग्रंथ रट के निकले सभी नारीवादियों को ये फोकट की सलाह देता हुँ आपकी भाषा चाहे कुछ हो पर अगर आप नारीवाद पर बात कर कॉफी पीने और इंडिया गेट पर कैंडिल लाईट मूवमेंट के आदती क्रांतिकारी हैं और इंडिया हैबीटेट सेंटर से लेकर तमाम प्रतिष्ठीत संस्थान की गोष्ठियों के नियमित विचारक हैं तो प्लीज आप तुरंत एक बार तो भिखारी ठाकुर को पढ़े और सुननें।

भोजपुरी साहित्य और संस्कृति के जनक “भोजपुरी के शेक्सपियर” भिखारी ठाकुर

भिखारी ना केवल नारी के प्रेम,विरह और उसकी मजबुरिययों पर लिखा और गाया बल्कि वो साड़ी पहन कर नारी बन चौकी पर नाचे भी।कहते ह्भियाईं हर नारी के अंदर एक पुरुष और पुरुष के अंदर के एक नारी होती है लेकिन भिखारी ने इस भ्रमिक कहावत को वास्तविक अर्थ दे के अपने अंदर के नारी को जिन्दा किया और उसी रूप में रह उसी की नजर से दुनिया देखी और महसुस किया तब जा के लिखा।

उनका नारीवाद सिमोन द बोआ या तसलीमा नसरीन के किताबों का खुमार नही है। इस मायने से भिखारी केवल भोजपुरी के काबिल कलाकार नही,नारीवाद के विमर्श का जरूरी कच्चा माल हैं।भिखारी अपने आप में एक आंदोलन थे जिसमें समस्याओं और समाज की विसंगतियों को सूर देकर गाया और जताया।एक सरोकारी कवि लेखक और कलाकार के रूप मे भिखारी ने तात्कालिक समाज के सभी पहलुओ को अपने रचनाओं में समेटा और सामने लाया।एक कवि कलाकार समाधान का उपक्रम नही दे सकता क्योंकि उसके संसाधनों की एक सीमा है,ये काम समाज चलाने और सरकार की मशिनरी का है।लेकिन वो जितना दे सकता है भिखारी ने उससे कम कतई नही दिया।

भोजपुरी साहित्य और संस्कृति के जनक

भिखारी के एक नाटक गब्बरघिचोंर की कथा का प्राचीनतम श्रोत बौद्ध अनुश्रुतियों में मिलता है जो कायदे से ये भी बता देता है कि भिखारी अपढ़ हो के भी दर्शन और परम्परा की चेतना से कितने परिचित थे।उनके रचनाओं का ये प्राचीन कनेक्सन उन्हें और गंभीर और गहन बना देता है जिसे वो जनता की जबान में ढाल जनमानस को प्रेषित कर रहे थे।

Shakespeare of Bhojpuri Bhikhari Thakur
Shakespeare of Bhojpuri Bhikhari Thakur

खैर ये भी अजीब है कि देश के त्रिनिनाद टोबेगौ,मॉरीशश,सुरीनाम,केन्या,म्यांमार,पॉप गुयाना,वेस्टइंडिज,फिजी आदि देश मेँ भोजपुरी संगीत का जलवा भिखारी के नाम से चलता है पर अपने यहाँ आज की पीढ़ी के पास भिखारी के बारे मे जानकारी सीमित है।क्या विडंबना है कि अमूल्य भिखारी ठाकुर से चली परंपरा अब कौड़ी के राधेश्याम रसिया,गुड्डु रंगीला और कलुआ के लिजलिजे गीत तक आ गई है।दुसरी तरफ,भरत ब्यास,शारदा सिन्हा जी और मालिनी अवस्थी जी जैसे कुछ नाम भी हैं जो भोजपुरी की सड़ाँध के बीच कुछ गमकते नाम हैं।

नये युवाओं में चंदन तिवारी और शैलेंद्र मिश्र जैसे भोजपुरियों के गीत चयन और प्रयास ने उम्मीद बंधाई है।पर आज ना केवल भोजपुरिया समाज के लिए बल्कि अपने आसपास के उस सारे समाज के लिए जिसका का ताना बाना हमारे परिवेश जैसे धागे से बुना है, भिखारी के छुटे आधे अधुरे आंदोलन को बढ़ाने की जरूरत है।भिखारी को सुनने और गाने की जरुरत।एक भिखारी अपनी विरासत में हमें इतना कुछ दे गया और हम अय्याशों की तरह परंपरा लुटाते रहे।जरूरत है उस भिखारी की बादशाहत को जोगने की, उस थाती को जोगने की।नाम भिखारी और काम का राजा.. कैसन लिखला हे भाग विधाता।जय हो।

~ युवा साहित्य अकादमी से सम्मानित लेखक नीलोत्पल मृणाल के फ़ेसबुक वॉसेल

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