History of Banke Bihari Temple in Hindi – श्री बांके बिहारी महाराज के दर्शन तो आपने किये ही होंगे। मन्दिर के विशाल चौक में प्रवेश करते ही ऊँचे जगमोहन के पीछे निर्मित गर्भग्रह में भव्य सिंहासन पर विराजमान श्रीबांके बिहारीजी के दर्शन होते हैं। उत्सवों के अवसर पर और ग्रीष्म ऋतु में जब फ़ूल-बंगले बनते हैं तब श्रीबिहारीजी महाराज जगमोहन में विराजते हैं और परमोत्कृष्ट साज-श्रूंगार के साथ अपने भक्तों को दर्शन देते हैं तथा सभी भक्तों की मनोकामनाओं को पूरी करते हैं|
श्री बांके बिहारी मंदिर (Banke Bihari Temple) भगवान कृष्णा को समर्पित एक हिन्दू मंदिर (Hindu Temple) है। यह मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के वृन्दावन जैसी धार्मिक और पवित्र जगह पर स्थित है। वृन्दावन के ठाकुर के मुख्य सात मंदिरों में से यह एक है, दुसरे मंदिरों में मुख्य रूप से श्री गोविंद देवजी, श्री राधा वल्लभजी और चार दुसरे मंदिर शामिल है।
बांके बिहारीजी वास्तव में निधिवना की पूजा अर्चना करते थे। बांके का अर्थ “तीन स्थानों पर तुला हुआ” और बिहारी का अर्थ “सर्वाधिक आनंद लेने वाला” होता है। बांके बिहारी में भगवान श्री कृष्णा की मूर्ति त्रिभंगा आसन में खड़ी है। हरिदास स्वामी असल में इस धार्मिक और चमत्कारिक मूर्ति की पूजा कुंज-बिहारी के नाम से करते थे।
इतिहास | History of Banke Bihari Temple in Hindi:
बांके बिहारी मंदिर (Banke Bihari Temple) की स्थापना स्वामी हरिदास (द्वापर युग में उन्हें ललिता सखी कहा जाता था), जो प्रसिद्ध गायक तानसेन के गुरु थे। कहा जाता है की श्री स्वामी जी के प्रार्थना करने के बाद ही यह युगल एक मूर्ति में परिवर्तित हो गया और इसे मूर्ति को बाद में बांके बिहारी का नाम दिया गया (यही मूर्ति हमें मंदिर में भी दिखाई देती है)। इस मूर्ति की स्थापना निधिवन में की गयी थी।
श्री बांके बिहारी मंदिर (Banke Bihari Temple) में स्थापित की गयी बिहारीजी की मूर्ति, वही मूर्ति है जिसे स्वामी हरिदास को श्यामा-श्याम ने स्वयं भेट स्वरुप दी थी। कहा जाता है की भक्तो की प्रार्थना के बाद ही भगवान ने इस मूर्ति में प्रवेश किया था और स्वामी हरिदास के अनुसार भगवान जाने से पहले अपने पीछे एक काली चमकीली और आकर्षक मूर्ति छोड़ गये थे।
History of Banke Bihari Temple in Hindi
स्वामी हरिदास का जन्म श्री आशुधिर और उनकी पत्नी श्रीमती गंगादेवी की संतान के रूप में राधा अष्ठमी के दिन हुआ था। राधा अष्ठमी विक्रम संवत 1535 में भाद्रपद के महीने में दुसरे पखवाड़े के आठवे दिन आती है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश में अलीगढ के पास हरिदासपुर नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम आशुधीरजी और माता का नाम गंगा देवी था। इनके भाइयों का नाम श्रीजगन्नाथ जी एवं श्री गोविंद जी था।
25 वर्ष की अवस्था में अपने समस्त धन-धाम का परित्याग कर श्रीस्वामी हरिदासजी अपने पूज्य पिता श्रीआशुधीर जी महाराज से दीक्षा लेकर श्रीधाम वृन्दावन में परम रमणीय़ श्रीनिधिवन नामक नित्यविहार की भूमि में आकर निवास करने लगे। उनके साथ उनके भतीजे बीठलविपुल जी भी आये थे। उस समय संवत 1560 में वृन्दावन एक गहन वन था एवं वृन्दावन में भवन व सड़कें भी नहीं थी।
श्रीस्वामी हरिदासजी ने वृन्दावन में निवास किया और वहाँ परम विलक्षण रस-रीति का प्रवर्तन किया। श्रीस्वामी हरिदासजी महाराज नित्य-निकुँज लीलाओं में ललिता स्वरूप हैं व नित्यविहार के नित्य सागर में रसमग्न रहकर प्रिया-प्रियतम का साक्षात्कार करते हुए उन्हीं की केलियों का गान करते हैं। स्वामी जी जब भी अपने तानपुरे पर संगीत की आलौकिक स्वर लहरियाँ बिखेरते थे तब सम्पूर्ण वृन्दावन थिरकने लगता था, एक आलौकिक छटा बिखर जाती थी, सभी पशु-पक्षी भी मंत्र मुग्ध होकर उनका संगीत सुनने लगते थे। उनके भतीजे बीठलविपुल जी हमेशा सोचते थे कि स्वामी जी का संगीत किसके लिये समर्पित है।
Banke Bihari Temple
स्वामी हरिदास ही ललिता ‘सखी’ का पुनर्जन्म है, जिनका भगवान कृष्णा के साथ आंतरिक संबंध था। कहा जाता है की स्वामी हरिदास को बचपन से ही ध्यान और शास्त्र में रूचि थी, जबकि उनकी उम्र के दुसरे बच्चो को खेलने में रूचि थी। इसके बाद उन्होंने अल्पायु में ही हरिमति से शादी कर ली। लेकिन शादी के बाद भी वे वैवाहिक सुखो से दूर रहे और उनका ज्यादातर ध्यान साहित्यीक चीजो और शास्त्र में ही लगा रहता था।
हरिमतिजी भी किसी संत आत्मा से कम नही थी, जब उन्हें इस बात का अहसास हुआ की उनका पति भगवान की शरण में जा चूका है, तब बेहद प्रार्थना की और छोटे दीपक की लौ में प्रवेश कर हरिदास की उपस्थिति में ही खुद के शरीर को स्वर्ग में भेज दिया। उनके जान के बाद उनके शरीर का कोई भी अंग उनके पीछे बचा हुआ नही था।
इसके कुछ समय बाद ही उन्होंने वृन्दावन जाने के लिए अपने गाँव को छोड़ दिया। वृन्दावन उस समय एक घना जंगल था और इसीलिए उन्होंने रहने के लिए किस एकांत स्थान का चुनाव किया, जिसे बाद में निधिवन के नाम से जाना जाने लगा। वहाँ रहते हुए उन्होंने संगीत का अभ्यास किया और भगवान का ध्यान लगाया। वहाँ रहते हुए वे लगातार नित्य रस और नित्य बिहार का अभ्यास करते थे। साधना करते हुए वे भगवान कृष्णा को समर्पित संगीत की रचना भी करते थे।
The Hindu Temple “Banke Bihari Temple”
निटी बिहार में वे हमेशा भगवान की भक्ति का आनंद लेते और उनकी संगीत कला से गाँव के दुसरे लोग भी काफी प्रसिद्ध हुए। निधिवन में उनकी ध्यान साधना को गाँव के दुसरे लोग भी अपनाने लगे थे। कहा जाता है की स्वामी हरिदास में श्लोको का सागर भरा हुआ था।
उनके चेले उनकी जगह को जानने के लिए काफी जिज्ञासु थे और इसीलिए एक दिन स्वामीजी की आज्ञा से वे एक दिन कुंज में प्रवेश कर गये। लेकिन कुछ भी देखने की बजाए वे लगभग अंधे हो चुके थे और उन्हें एक तीव्र रोशनी दिखाई दी, जिससे पूरी जगह प्रकाशित हो चुकी थी।
उनके दुर्दशा को देखते हुए स्वामीजी खुद उन्हें देखने के लिए गये और तभी उनकी प्रार्थना के बाद ही भगवान अपनी दिव्य पत्नी के साथ उस जगह पर आए और उन्होंने पूरी जगह को प्रकाशित कर दिया और चारो तरह आनंद की हरियाली छिडकी।
श्रद्धा का स्थान बांके बिहारी मंदिर
कहा जाता है भगवान की सुन्दरता को देखकर स्वामी हरिदास अचंभित हो गये थे, वो इतने आनंद से भगवान के दर्शन कर रहे थे की उनके पास पलक झपकने का भी समय नही था। कहा जाता है इसके बाद वे सभी पत्थरो में परिवर्तित हो गये।
इन किंवदन्तियो को गोस्वामी के युग में बताया गया है, जिन्होंने अपनी कविताओ और छंदों के मध्यम से भगवान की दिव्य सुन्दरता और रूप का वर्णन किया था। उन्होंने कहा था की भगवान का दिव्य प्रकार इतना मनमोहक और आकर्षक है की एक बार उनके दर्शन करने के बाद कोई भी उसे छोड़कर जाना पसंद नही करेगा।

लेकिन क्या भगवान के इस रूप का दर्शन करने के लिए लोग अपने समृद्ध और सुखी जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होंगे? कहा जाता है की भगवान की सुन्दरता मनुष्यों की सुन्दरता से करोडो गुना ज्यादा है और दुनिया में कोई भी भगवान की छवि को अपनी कल्पना के अनुसार नही बना सकता।
श्री हरिदास जी
इसके लिए श्री हरिदास जी ने यह भी कहा है की कई बार घन (बादल) और दामिनी (बिजली) में मिलाप में भी हमें भगवान की घनी प्रतिकृति दिखाई देती है। भारत में राधाजी को चाहने वाले करोडो भक्त है जो हर साल करोडो की संख्या में उनके दर्शन के लिए आते है।
श्री हरिदासजी हमेशा चाहते थे की उनके प्रिय भगवान हमेशा उनकी आँखों के सामने ही रहे। और इसीलिए कहा जाता है की राधा-कृष्णा के युगल ने मूर्ति में प्रवेश कर लिया था और आज भी उस मूर्ति के दर्शन हम बांके बिहारी मंदिर में कर सकते है।
कहा जाता है श्री बांके बिहारीजी की सुन्दरता और आकर्षण की वजह से लाखो श्रद्धालु रोज इसके दर्शन करना चाहते है और दर्शन करते भी है। कहा जाता है की यदि कोई इंसान बांके बिहारीजी की आँखों में लम्बे समय तक देखता रहता है तो वह इंसान अपनी स्वयं चेतना को खो देता है और उनकी लीला में मग्न हो जाता है।
श्रद्धालुओ का श्रद्धास्थान
वर्तमान में भगवान बांके बिहारी जी की प्रतिमा को ही बिहारीजी के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में बिहारीजी की सेवा की जिम्मेदारी स्वामीजी ने खुद गोस्वामी जगन्नाथ जी को दे रखी है। गोस्वामी जगन्नाथ, स्वामीजी के छोटे भाई और भक्त थे। पारंपरिक रूप से आज भी बिहारीजी की सेवा जगन्नाथ गोस्वामी और उनके चेलो द्वारा ही की जाती है।
शुरू में, देवता की स्थापना निधिवन के भीतर प्रवेश करते ही छोटे मंदिर में की गयी थी। बिहारीजी के नए मंदिर की स्थापना 1862 AD में की गयी थी। गोस्वामी जी ने खुद मंदिर के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह मंदिर अपनेआप में ही किसी आकर्षक महल से कम नही, इस मंदिर का निर्माण राजस्थानी शैली में किया गया है।
अलग-अलग तरह से बिहारीजी की सेवा की जाती है। हर दिन तीन भागो में इनकी सेवा की जाती है : श्रृंगार, राजभोग और शयन। जिसमे श्रृंगार (भगवान का स्नान, कपडे और आभूषण से सजाना एवं मुकुट) और राजभोग (भोजन) पूर्वाह्न के समय होता है और शयन सेवा शाम में की जाती है। इस मंदिर में मंगला सेवा की कोई परंपरा नही है।
स्वामी हरिदास, मंगला सेवा नही करवाना चाहते थे क्योकि वे चाहते थे की उनके भगवान को रात में पूरा आराम मिले और वे उन्हें सुबह-सुबह परेशान नही करना चाहते थे।
तभी से लेकर आज तक यह मंदिर अपनी ऊंचाईयों पर खड़ा है| जिसके भीतर स्वयं भगवान वास करते है। हर दिन यहाँ लाखो श्रद्धालु भगवान के इस अनोखे रूप का दर्शन करने के लिए आते है।
2016 में केरला से सद्गुरु श्री माता अमृतानंदमयी देवी
बहुत से संत-महात्मा भी मंदिर में आते है। 2016 में केरला से सद्गुरु श्री माता अमृतानंदमयी देवी भी मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए आयी थी। उस समय अम्मा के साथ तक़रीबन 3000 दुसरे लोग भी मंदिर में दर्शन करने के लिए आए थे। जाने से पहले अम्मा भगवान की विशाल पूजा में भी शामिल हुई थी। उस समय मंदिर के पुजारियों में भी बड़े सम्मान के साथ अम्मा जी का स्वागत किया था और भेट स्वरुप उन्हें बांसुरी भी दी थी।
Source-
http://www.bankeybihari.info/banke-bihari-ji/?lang=hi http://www.gyanipandit.com/banke-bihari-temple-history-in-hindi/