- वर्तमान विलुप्त होने की दर अपेक्षित पृष्ठभूमि दर से 50 गुना अधिक है
- इससे पता चलता है कि एक अन्य बड़े पैमाने पर विलुप्त होने की घटना वर्तमान में चल रही है
अधिकांश पिछले विलुप्ति ज्वालामुखी से कार्बन डाइऑक्साइड से जुड़े हैं - बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर से रहने वाले पर्यावरणीय विनाश और जलवायु परिवर्तन ने अतीत के सामूहिक विलुप्त होने की याद दिलाते हुए स्तरों पर विलुप्त होने की दर को गति प्रदान की है।
- आने वाले 100 या 1000 सालों में हो सकता है धरती पर कोई ऐसा विस्फोट हो, जिसके कारण धरती का ‘Eco System’ तबाही की ओर बढ़ जाए.
हज़ारों साल पहले होने वाला विलोपन, ज्वालामुखियों से निकलते बड़ी मात्र में कार्बन डाई ऑक्साइड की वजह से होता था. वायुमंडल का तापमान इतना अधिक था, जिसे धरती पर उपस्थित जीव जंतु और वनस्पतियां सह नहीं पायीं. अब वायुमंडल प्रदूषण, कार्बन डाई ऑक्साइड के बढ़ते स्तर और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से एक बार फिर जीवों के विलुप्त होने का संकट बढ़ता नज़र आ रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है धरती पर कुछ जीवों के विलुप्त होने की संभावनाएं बढ़ रही हैं.
अगर वैज्ञानिकों का मानना सही है, तो हज़ारों साल पहले की उन परिस्थियों को जानते हैं जिनकी वजह से धरती से जीवों का विनाश हुआ था. वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तक केवल पांच बड़ी तबाही हुई हैं, जब धरती से बड़े स्तर पर जीव गायब हुए हैं. इन सबमें ज़्यादा प्रसिद्ध डायनासोर का धरती से मिट जाना है.
इन घटनाओं को समझने के लिए हमें सबसे पहले समझना होगा कि हज़ारों साल पहले ऐसा क्या हुआ था, जो धरती से इतने बड़े स्तर पर जीव विलुप्त हो गए.
1. The Late Ordovician Stage
445 मिलियन वर्ष पहले धरती पर आये विनाशकारी परिवर्तन के पीछे, South Pole या ‘दक्षिणी ध्रुव’ में बर्फ़ का जमना था. यह पहली घटना थी जब धरती बर्फ़ की चपेट में आई थी. इस विलुप्त होने का कारण लगभग 57% समुद्री जाति (प्रजातियों के स्तर के ऊपर टैक्सोनॉमिक रैंक), जिसमें कई त्रिलोबाइट्स, गोलाबंद ब्राचीपोड्स और ईल जैसी कॉनोडॉन्ट शामिल हैं।
2. The Late Devonian Stage
380 मिलियन वर्ष पहले धरती के Viluy Traps इलाक़े में ज्वालामुखी विस्फोट हुआ, जिसके कारण धरती से बड़े स्तर पर जीव विलुप्त हो गए. इस विस्फोट से समुद्र तल में ऑक्सीजन की कमी हुई होगी जिसकी वजह से समुद्र तटीय जीवों का विनाश हुआ होगा. Viluy Traps अब आधुनिक साइबेरिया में है.
यह विलुप्त होने के कारण प्रमुख जलवायु परिवर्तन से जुड़ा हुआ है, संभवत: आधुनिक साइबेरिया में ज्वालामुखी विलियु जाल क्षेत्र के विस्फोट के कारण होता है।
3. The Middle Permian Stage
वैज्ञानिकों ने अभी हाल में ही एक और घटना चक्र का पता लगाया है, जब धरती पर एक विनाशकारी परिवर्तन हुआ था. क़रीब 262 मिलियन वर्ष पहले धरती पर तीसरी बार विस्फोट हुआ था. यहां भी बर्फ़ का जमना एक प्रमुख कारण रहा है.
उस समय धरती पर रहने वाले लगभग अस्सी प्रतिशत जीवों का विनाश हो गया था. वैज्ञानिकों के अनुसार अब ये जगह चीन में पड़ती है.
4. The Late Permian Stage
धरती पर चौथा बड़ा विस्फोट 252 मीलियन वर्ष पहले हुआ था. इसका परिणाम यह हुआ कि धरती से 96 प्रतिशत जीव विलुप्त हो गए. इस विस्फोट का कारण था Siberian Traps का ज्वालामुखी विस्फोट. ये विस्फोट साइबेरिया में हुआ था. उस वक़्त की सबसे तपती ज़मीन आज इतनी ठंडी है कि उधर से भारत की ओर आने वाली हवाओं को रोकने के लिए हिमालय पर्वत की ऊंचाई भी कम पड़ती है.
5. The Late Triassic Stage
यह Triassic Event 201 मिलियन वर्ष पहले हुआ था. इस विस्फोट की चपेट में पूरी धरती आई थी. जहां-जहां ज्वालामुखी का लावा फ़ैला वहां- वहां जीवों का अस्तित्त्व नहीं रहा. हालांकि इस बार केवल धरती से 47 प्रतिशत जीव कम हुए थे. विलुप्त होने वाले जीवों में रेंगने वाले जीव, जलीय, थलीय और हवा में उड़ने वाले जीव भी शामिल थे. डायनासोर के विनाश का जुरासिक पीरियड भी इसी बीच शुरू हुआ था.
इन विस्फोटों के कारण धरती का तापमान बढ़ने लगा और ध्रुवों से बर्फ़ पिघलने लगी. धरती के अंदर का जलीय भाग और विस्फोटों के बाद बनी गहरी खाई ने Atlantic Ocean को जन्म दिया.
क्या हम तेजी से विनाश की ओर बढ़ रहे हैं?
पर्यावरण का बढ़ता तापमान, ग्लोबल वॉर्मिंग, ध्रुवों से बढ़ती संख्या में ग्लेशियरों का पिघलना और बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण इस बात के संकेत दे रहे हैं. उस वक़्त धरती की तबाही के लिए प्रकृति ज़िम्मेदार थी, लेकिन अब आने वाले कुछ सौ सालों में धरती की तबाही के लिए इंसान ज़िम्मेदार होगा.
विनाशकारी परिवर्तन हुए लगभग 66 मिलियन वर्ष हो गए हैं, लेकिन अब भविष्य में विनाश की संभावनाएं बढ़ रही हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि भविष्य में होने वाली तबाही पिछली तबाही से लगभग 50 प्रतिशत ज़्यादा ख़तरनाक होगी. जिस तरह से इंसान जैव विविधता के लिए ख़तरा बन रहा है, उसके मद्देनज़र यह कहना ग़लत नहीं होगा कि आने वाले दिनों में जैव विविधता के ख़त्म होने का ख़तरा और बढ़ जाएगा. आने वाले 100 या 1000 सालों में हो सकता है धरती पर कोई ऐसा विस्फोट हो, जिसके कारण धरती का ‘Eco System’ तबाही की ओर बढ़ जाए.
भविष्य को देखकर अगर आधुनिक मानव पर्यावरण के प्रति सचेत नहीं रहा, तो आने वाली पीढियां धरती को अपने सामने तबाह होते देखेंगी.
पिछले विलुप्त होने के कारण ज्वालामुखी से कार्बन डाइऑक्साइड के साथ जुड़े हुए हैं, जिससे तीव्र ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है, जिससे कई पर्यावरणीय झरना प्रभाव आते हैं। कारण भिन्न हो सकता है, लेकिन परिणाम समान होंगे। हालांकि, यह अब पिछले मास विलुप्त होने के बाद 66 मीटर वर्ष है। पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र बहुत अलग हैं, और संभवत: आखिरी प्रमुख जैविक संकट के बाद के समय की अवधि को देखते हुए अधिक स्थिर है।