बिहार: पांडवों के अज्ञातवास से जुड़ा स्थल, मिलते हैं महाभारतकालीन अवशेष

बिहार: पांडवों के अज्ञातवास से जुड़ा स्थल, मिलते हैं महाभारतकालीन अवशेष (Mahabharata Relics): नेपाल से बिल्कुल सटे एवं बिहार की आखिरी छोर पर बसा किशनगंज जिले का ठाकुरगंज यूं तो कई मायनो में ऐतिहासिक माना जाता है। लेकिन मुख्य रूप से लोग इसे पांडवो के अज्ञातवास स्थल (Places connected to Pandava ignorance के रूप में भी जानते हैं। किंवंदती है कि पांडवो को जब अज्ञातवास मिला था तब उन्होंने कुछ समय यहां बिताया था। सदियों से लोगों की आस्था और मान्यता है कि महाभारत कालीन कई धरोहर ठाकुरगंज व इसके आसपास बिखरे हैं। ऐसा ही एक स्थल भीमतकिया नाम से है जो वार्ड नंबर 4 में स्थित है । यह एक तकियानुमा गोल टीला है जिसे लोग भीम का तकिया बताते हैं और मानते हैं कि अज्ञातवास के दिनों में विशालकाय भीम इसी टीले पर सर रख कर विश्राम करते थे।

Places connected to Pandava ignorance

Mahabharata Relics in Bihar: इसी तरह पटेसरी पंचायत अंतर्गत दूधमंजर में एक खीर समुंद्र स्थल है। जहां बताया जाता है कि भगवान कृष्ण के प्रिय व गुरु द्रोणाचार्य के परम शिष्य अर्जुन ने अपने वाण से खीर की नदी बनाई थी। आज लोग इसे खीर समुन्द्र के नाम से जानते हैं और माघ मास के पूर्णिमा के मौके पर यहां लोग आकर पूजा-अर्चना करते हैं और यहां मेला भी लगता है। शहर के ही वार्ड नंबर 6 एवं वार्ड नंबर एक में भातढ़ाला एवं सागढ़ाला पोखर है जहां पांडवों स्नान के लिए तालाब बनवाया था और वे यहां खाना भी बनाते हैं।

Mahabharata Relics in Bihar

बंदरझूला पंचायत अंतर्गत कन्हैया जी एक टापू है जहां पांडवो में अपना समय बिताया था। सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण इस बात का है कि ठाकुरगंज प्रखंड से बिलकुल सटे मेची नदी पार नेपाल में भीम ने कीचक नाम के राक्षक का वध किया था। इस स्थान पर कीचक का वध करते हुए एक प्रतिमा आज भी कीचकबध स्थल पर लगी है। यहां भी माघी पूर्णिमा के मौके पर मेला लगता है और लोग पूजा-अर्चना के लिए यहां पहुंचते हैं।

ये धरोहर सुरक्षित नहीं है 

Mahabharata Relics in Bihar: महाभारत कालीन जो भी धरोहर ठाकुरगंज में हैं वे आज सुरक्षित नहीं हैं और न ही इनपर पुरातत्व विभाग या जिला प्रशासन का ध्यान है। हालांकि पुरातत्व विभाग ने वर्ष 2007 में इन स्थलो का मुआयना किया था तथा इसे संरक्षित करने की योजना बनाई गई थी। इनमें सिर्फ प्रखंड के  कन्हैयाजी में टापू का घेराव किया गया था। लेकिन शेष स्थलों को छोड़ दिया गया। जबकि आज भी कई लोग इन धरोहरो को देखने के लिए दूर दराज से आते हैं

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