लालू यादव के रैलियों के अनोखे नाम, कभी ‘गरीब’ तो कभी ‘महागरीब’ रैला…

पटना: राष्ट्रीय जनता दल (RJD) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की अगुवाई में रविवार (27 अगस्त) को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में ‘भाजपा भगाओ देश बचाओ’ रैली होने जा रही है। पटना के तमाम सड़कों और शहर के सभी चौक-चौराहों को बड़े-बड़े होर्डिंग्स और बैनर-पोस्टर से पाट दिया गया है। राज्य के विभिन्न हिस्सों से लोगों को पटना लाने और वापस ले जाने के लिए पार्टी ने अपने खर्च पर तीन रेलगाड़ियों की सेवाएं उपलब्ध कराई हैं. बिहार में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद राजद अब विपक्ष में है, इस कारण उनके समर्थकों के तेवर भी सरकार के खिलाफ बेहद गर्म हैं, ऐसे में राजद इस रैली के बहाने अपना शक्ति प्रदर्शन भी करेगा. अपनी रैलियों को खास अंदाज में पेश करने के लिए प्रसिद्ध लालू इस रैली में भी कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते. लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक सफर पर नजर डालें तो वे अपनी रैलियों के नाम भी ऐसे रखते हैं जो आम जनता के दिमाग में सीधे असर करे. आइए लालू यादव की पिछली कुछ विशाल रैलियों का जिक्र करते हैं, जो देश-दुनिया में अपने नाम की वजह से भी सुर्खियों में रही।

गरीब रैली (1995): लालू प्रसाद यादव ने यह रैली उस वक्त की थी जब वे जनता परिवार से अलग अपनी पहचान बनाने में जुटे थे। रैली के नाम में गरीब शब्द लाने के पीछे का मकसद था कि वे बिहार के लोगों को समझा सकें कि जनता परिवार के बाकी नेताओं के बीच वे इकलौते ऐसे नेता हैं जो गरीबों के हितैषी हैं।

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गरीब रैला (1996): इस दौर में केंद्र में बीजेपी सत्ता में आ गई थी, वह राम और मंदिर के नाम पर लोगों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही थी. तभी लालू ने अपने कोर वोटरों को एकजुट करने के लिए रैली की जगह रैला शब्द जोड़ दिया। रैला शब्द के पीछे का मकसद यह था कि वे गरीब वोटरों को बता सकें कि लोग रैली करते हैं। वे गरीबों के लिए रैला कर रहे हैं। लालू की यह सोच काफी हद तक सफल भी रही थी. वे अपने वोटरों तक यह पर्सेप्शन बनाने में सफल रहे कि रैली रैला में तभी तब्दील होगा जब ज्यादा लोग गांधी मैदान पहुंचेंगे. इसी बहाने लालू शक्ति प्रदर्शन करने में सफल रहे।

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महागरीब रैला (1997): इस दौर में लालू के खिलाफ बीजेपी और नीतीश कुमार मुखर हो चुके थे। दोनों मिलकर लालू-राबड़ी के शासन को जंगल राज कहने लगे थे. ऐसे में लालू ने अपना जनाधार बढ़ाने के लिए गरीब में ‘महा’ शब्द जोड़ दिया. वे इसके जरिए बताने की कोशिश कर रहे थे वे ओबीसी के अलावा समाज के बेहद निचले तबके के भी नेता हैं।

लाठी रैला (2003): इस दौर में बिहार की राजनीतिक हवा में लालू यादव का असर कम हो चुका था। ऐसे में अपने जनाधार बचाने के लिए लालू ने लाठी रैला किया था. लाठी उस वर्ग का भी प्रतीक है, जो खेती-किसानी और पशुपालन से जुड़ा है। ये वंचित तबके के हाथ में आए उस ‘राजदंड’ जैसा भी है, जो अक्‍सर सत्ता पर काबिज ‘बाहुबलियों’ के हाथों में देखा जाता रहा है।

चेतावनी रैली (2007): इस दौर में नीतीश+बीजेपी गठबंधन के सामने लालू अपनी लोकप्रियता गंवा चुके थे। ऐसे में वे अपने कोर वोटरों को फिर से एकजुट करने की कोशिश में थे. वह यह संदेश देने की कोशिश कर रहे थे कि वे नीतीश राज में यादव और मुस्लिम वोटरों के साथ भेदभाव वह बर्दाश्त नहीं करेंगे।

परिवर्तन रैली (2012): नीतीश कुमार का बीजेपी से दोस्ती टूट चुकी थी. लालू बिहार की राजनीति में नए गठबंधन की उम्मीद लगाए थे. इसी को देखते हुए उन्होंने संदेश देने की कोशिश की, कि अब बिहार में नई सरकार बनने जा रही है।

भाजपा भगाओ देश बचाओ’ (2017): इस वक्त लगभग पूरे देश में बीजेपी की सत्ता है. बिहार में चुनाव हारने के बाद बीजेपी ने नीतीश से दोबारा दोस्ती कर लालू यादव को सत्ता से बाहर कर दिया. ऐसे में लालू बीजेपी एंटी ग्रुप को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही वे इस रैली के जरिए बताने की कोशिश में हैं कि बिहार में वे भले ही विपक्ष में हैं, लेकिन उनकी शक्ति कम नहीं हुई है।

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